Description
अन्तरिायांचा आधुनिक साहित्य में एक अनोखी रचना है। यह उपन्यास अन्तरिक्षविज्ञान पर आधारित है, तथा इस विज्ञान की प्रामाणिक जानकारी के साथ रखा गया है। संस्कृत में साहसकथा तथा विज्ञानकथा के अभाव की पूर्ति में यह स्तुत्य प्रयास है। भूमिका में उपन्यासकार ने विज्ञानकथा के विवधविधाओं पर विशद चर्चा की है। उपन्यास भविष्य के उस कालकण्ड में ले जाता है, जिसमें वैज्ञानिक अन्यग्रहों पर सहज आवागमन कर रहे हैं। पश्चिमी साहित्यचिन्तन में माना गया है कि फन्तासी या फैटेसी कविता तथा कथाकृतियों को असाधारण बना देती है। इस उपन्यास में फन्तासी का सटीक प्रयोग हुआ है। डॉ. विक्रम, राकेश, सुनीता आदि वैज्ञानिकों के साथ बौधायन नाम का यन्त्रमानव (रोबोट) भी इस कथा में एक पात्र है। प्राचीन भारतीय विमानशास्त्र के साथ शुल्बसूत्रों के गणितीय प्रमेयों तथा आर्यभटीय, मयमतम् आदि ग्रन्थों के सिद्धान्तों पर भी चर्चा भविष्यत्काल के भारतीय वैज्ञानिक इसमें करते हुए निरूपित किये गये हैं। नालन्दा के आचार्यो दवारा विमाननिर्माण, सप्तर्षिसंस्थान की प्रयोगशाला और नालन्दा के भव्य अतीत का आलेखन अद्भुत है। ग्रेमूला नामक अपरिचित ग्रह की सृष्टि उसपे भारतीय संस्कृति का प्रभाव, वागाम्भृणी यन्त्र के प्रयोग से भाषा का रहस्योद्घाटन और कौमुदीमहोत्सव पाठक को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। अन्तरिक्ष से पृथ्वी को देखते हुए अथर्ववेद के अनेक मन्त्र इस उपन्यास के पात्र उद्धृत करते हुए वार्तालाप करते हैं। भारतीय अन्तरिक्षयात्री कल्पना चावला की स्मृति भी उनके मन में जागरित है।
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