Description
भगवद्गीता एक शास्त्र है। उस भक्ति भावना के साथ ही इसका अध्ययन करना चाहिए। इसका अध्ययन करना एक यज्ञ करने के समान है। किसी भी यज्ञ का एक फल (परिणाम) मिलता है। उसी प्रकार गीता सार का ज्ञान प्राप्त करना भी एक यज्ञ का फल प्राप्त करना है। गीता का अध्ययन करने से सारे वेदों, शास्त्रों, पुराणों का अध्ययन करने के बराबर है। बहुत सारे रहस्यों का खुलासा होता है। अतः भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए कुछ शब्दों के गूढार्थों को समझना चाहिए। तो फिर भगवान ने क्या कहा, गुह्यतम (रहस्य) परम गुह्यतम (परम रहस्य) गुह्याति गुह्यतमम् (अत्यंत रहस्य) ऐसा कहा है। अब पता करना है रहस्य, परम रहस्य, अत्यंत रहस्य क्या है? उनको कैसे जानना है ? साधारण मनुष्यों को उन रहस्यों के गूढार्थ को कौन बताएगा। उनको अच्छे से समझाने की कोशिश कौन करेगा ? यही कोशिश है यह पुस्तक। गोता श्लोक, भावार्थ, उसके गूढार्थ, आदि की व्याख्या करके आसानी से समझाने का प्रयत्न किया है इस पुस्तक में। गीता सार को ज्ञात करने की उत्सुकता के सभी कारणों का पूर्ण रुप से अध्ययन व उसको समझकर लेखक की तरह, तृष्णा से भरे सभी ज्ञान पिपासुओं की बुद्धा को शान्त करने का एक प्रयास है यह पुस्तक। भगवद्गीता में अर्जुन के संदेह को भगवान औकृष्ण ने दूर किया। उनको कर्तव्य बोध कराया। उसके माध्यम से खारे मानव जाति का मार्ग दर्शन कराया। हित बोध कराया। आत्मा कैसी होती है, उसका स्वरूप क्या है, उसका वर्णन किया है।
Reviews
There are no reviews yet.