Description
संस्कृत भाषा में उपनिबद्ध और लिखित ग्रन्थों में भारतीय सभ्यता और संस्कृति के साथ-साथ मानव जीवन से सम्बन्धित मानव मूल्य, मानवाधिकार, नारी विमर्श, प्रकृति चित्रण, पर्यावरण आदि विभिन्न विषयों से सम्बद्ध वर्णन प्राप्त होते हैं। वेदों से लेकर आज तक भारत में पर्यावरण संरक्षण पर गहन चिन्तन, मनन और विमर्श होता आया है और वर्तमान में भी सर्वत्र हो रहा है। पर्यावरणीय तत्त्वों से सम्बद्ध पंचमहाभूतों में पृथ्वी आदि के साथ वायु का विशेष स्थान है। पर्यावरण संरक्षण से सम्बद्ध पुस्तक लेखन परम्परा में पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध, चिन्तित और पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यन्त सचेष्ट रहने वाले संस्कृत मर्मज्ञ डॉ० मुरारीलाल अग्रवाल जी ने स्वलिखित ‘संस्कृत वाङ्मय में वायु संरक्षण’ शीर्षक पुस्तक में वायु संरक्षण, संस्कृत साहित्य में वायु एवं अन्य तत्त्व विवेचन, वायु प्रदूषण और प्रकार, वायु प्रदूषक और प्रकार, वेद और प्राण वायु, प्राण वायु प्रदाता वृक्ष और मनुस्मृति, लौकिक संस्कृत साहित्य में वायु तत्त्व, वायु प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय और वायु संरक्षण के अधिनियम-इन नौ अध्यायों में संस्कृत वाङ्मय में वायु संरक्षण के संस्कृत के प्राचीन और अर्वाचीन ग्रन्थों में वर्णित सिद्धान्त और व्यवहार के साथ-साथ वर्तमान में वायु संरक्षण की महत्ता, उपयोगिता और आवश्यकता पर संक्षेप में प्रकाश डाला है, जो निःसन्देह प्रशंसनीय है।
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