Description
प्रस्तुत पुस्तक 20वीं शताब्दी के सूर्धन्य संत एवं कलाकार प्रातः स्मरणीय परमपूज्य स्वामी डी. आर पार्वतीकर के व्यक्तित्व, जीवन शैली, संत प्रकृति एवं संगीत जगत को उनके योगदान पर आधारित है। अध्यात्म एवं कला को समर्पित आपकी जीवन शैली जनमानस एवं कला साधकों के लिये एक आदर्श है। स्वामी हरिदास संगीत सम्मेलन मथुरा-वृन्दावन के संस्थापक अध्यक्ष एवं दत्तात्रेय वीणा के अविष्कर्ता रूद्र वोणा वादक स्वामी डी. आर. पार्वतीकर जी को अनेक भक्त नारद मुनी, नादयोगी बीणा बाबा, वीणा महाराज आदि नामों से भी जानते हैं। ‘बीणा महाराज संगीत समिति द्वारा प्रतिवर्ष आपकी स्मृति में ऋषिकेश के दो दिवसीय शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम भी कई वर्षों से आयोजित किया जाता है। अध्ययन की सुविधा हेतु इस पुस्तक को छ: अध्यायों में विभाजित किया गया है। इस पुस्तक में वर्णित स्वामी जी के द्वारा 32 घाटों में वर्गीकृत राग वर्गीकरण की वैज्ञानिक ‘श्री नादानन्द पद्धति’ विशेष रूप से संगीत जगत को अनुपम भेंट है। संगीत में अलंकारों, बंदिशों, तिहाइयों आदि के अभ्यास में नाद योग द्वारा किस प्रकार हरि नाम जप के साथ आध्यात्मिक लाभ लिया जा सकता है यह क्रिया तथा अभ्यास की युक्ति इस पुस्तक में निहित है जो कि अत्यन्त लाभप्रद है। रामविठल साहित्यिक उपनाम से आपके द्वारा बनाए गए अनेक पद व ध्रुपद इस पुस्तक में सम्मिलित हैं। तालपक्ष पर भी स्वामी जी का गणितशास्त्र पर शोध सराहनीय है। साढ़े, पौने, सवा आदि मात्रा की तालों में ठेके तथा साधारण, फरमाइशी एवं कमाली चक्रदार तिहाइयों का विवरण विस्तारपूर्वक दिया गया है। भारतरत्न पं. रविशंकर जी ने एक कार्यक्रम के पश्चात् स्वामी जी के संगीत के लिये कहा-
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