Description
संहिता शब्द ऊहापोह यास्काचार्य एवं पाणिनी ने अपने अपने ग्रन्थों में किया है। पर सन्निकर्ष: संहिता (पा.सू. 1.4.109) अर्थात् स्वरों का एवं स्वरसंमिश्रव्यंजनों का परस्पर स्वाभाविक अर्धमात्रा से अधिक काल के व्यवधान से उच्चारण करना ही संहिता है।
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