Description
वेदों के प्रति हमारे पूर्वजों और आधुनिक संस्कृत के विद्वानों तथा सनातन धर्मावलम्बियों का अगाध स्नेह और विश्वास तथा आस्था है। सृष्टि के आदिकाल में वेदों का निबंधन वैदिक देवभाषा में किया गया था। वैदिक काल के सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद को माना गया है। यह काल हिन्दू संस्कृति, सभ्यता, धर्म और ज्ञनोदय का आदिम स्रोत है। संसार की प्रत्येक विधाओं का यह उद्गम स्थल माना गया है। वैदिक काल में लोक का जीवन वनस्पतिमय था। जंगली क्षेत्रों में तो वनस्पतियों की बहुलता तो थी ही, परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में भी उनकी बहुलता थी। मानव जाति ने प्रकृति के सहचर में रहकर ही वनस्पतियों के विषय में सम्यक ज्ञान प्राप्त किया था। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होगा गया, वैसे-वैसे उनकी आवश्यकताएँ भी बढ़ती गई, वैसे-वैसे वनस्पतियों के प्रयोग करने का क्षेत्र भी बढ़ता गया। इन वनस्पतियों का प्रयोग लोग मनुष्यों और पशुओं में उत्पन्न होने वाले विकारों (रोगों) को दूर करने के लिए किया करते थे। इस तरह हम कह सकते हैं कि वैदिक कालीन मनुष्यों के योगक्षेम में वनस्पतियों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था। यही कारण है कि वैदिक साहित्य (विशेष करके वेदों में) में औषधीय वनस्पतियों की स्तुति की जाती थी। ऋग्वेद में सबसे प्रसिद्ध सूक्त औषधिसूक्त है। वेद में भी अनेक स्थल ऐसे पाए गए हैं, जहाँ मन्त्रद्रष्टा महर्षि वनस्पतियों की स्तुति करते हुए नहीं अघाते थे।
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