Description
तिस्कन्ध ज्योतिष में गणित का स्थान सर्वोपरि है। दैवज्ञ श्रीगणेश विरचित ग्रहलाघव ग्रहगणित ज्योतिष की एक अद्भुत रचना है। इसमें वर्तमान कल्प से लेकर अहर्गण (दिनसमूह) साधन कर उसके तीन खण्डों के तीसरे लघुखण्डीय दिनसमूह से ग्रहों की आकाशीय वस्तुस्थिति का जो चमत्कारिक सिद्धान्त स्थापित किया गया है वह आज सभी ग्रहगणितज्ञों से मान्य हो रहा है। पञ्चाङ्ग गणित साधन की ऐसी सरल शुद्ध उपलब्धि आचार्य श्रीगणेशजी तक ही सीमित रही है। बड़े लम्बे अरबों की संख्याओं के गणित की गुणन-भाजन की लम्बी और परिश्रम-साध्य ग्रहगणित की असुविधा को समझ कर श्रीगणेश देवज्ञ ने लघु आंकड़ों से ग्रह साधन की जो चमत्कारिक गवेषणा की है वह शुद्ध एवं सूक्ष्म है, इसी अभिप्राय से आचार्य ने इस ग्रन्थ का सही नामकरण ‘ग्रहलाघव’ किया है जो सरस एवं समीचीन है। मूल एवं दो प्राचीन टीकाओं के साथ इस मूल ग्रन्थ को ज्योतिष शिरोमणि केदारदत्त जोशी ने हिन्दी भाषा के माध्यम से सरल करते हुए उदाहरणों के साथ सरल एवं स्पष्ट कर दिया है। आशा है विद्वज्जन इस प्रयास का स्वागत करेंगे। इस ग्रन्थ के रचयिता श्री केदारदत्त जोशी हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले की पण्डित परम्परा के ज्योतिर्विदों की वंशावली से सेवित ‘जुनायल’ ग्राम में जन्म लेकर अपने पूज्य पिता पण्डित हरिदत्त ज्योतिर्विद् से ज्योतिष एवं शाक्त तन्त्र शास्त्रों का अध्ययन किया।
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