Description
तथ्यों के वैज्ञानिक विश्लेषण में निष्णात् कुमारस्वामी की प्रसिद्ध पुस्तक है: भारतीय कला का परिचय। यह संसार को भारतीय कला धारणा का परिचय देने वाली कीमती कोश-कृति है। इसी से विश्वभर के कला अध्येताओं ने भारतीय सूजन की भावभूमि का आरम्भिक असामान्य अवगाहन किया। भारतीय कला का परिचय की भूमिका में कुमारस्वामी स्पष्ट करते हैं कि भारत में कला और आधुनिक विश्व में कला अर्थ के रूप में दो भिन्न विचार है, भारत में कला जातीय अनुभव है और दैनिक भोजन की तरह जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति करती है। भारतीय कला सदैव ही किसी आवश्यकता की अनुक्रिया के रूप में उत्पन्न हुई है, एक ऐसा आदर्शवाद जो कलाकार को महिमा मण्डित करता है। सभी भारतीय कलाएँ गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से हस्तान्तरित संस्कारों से व्यावसायिक कार्मिकों द्वारा सृजित की गई है। मौलिकता और नवीनता कभी कभी विचारित होकर सृजन में नहीं पैठी। अलग-अलग समय की पहचान या इसमें रूप परिवर्तन उस समय के धर्मशास्त्र की आवश्यकता को प्रदर्शित करता है, प्रतिभाशाली के अन्वेषण को नहीं, गुणवत्ता में परिवर्तन व्यक्तिगत सृजन नहीं बल्कि प्रजाति के मानस चैतन्य व कर्मशीलता में आए परिवर्तनों को अभिव्यक्त करता है। इस पुस्तक में कुल अठारह अध्याय है। ये अठारह अध्याय महाभारत के अठारह दिन, अठारह पर्व और गीता के अठारह अध्याय की परम्परा लिए है और सभ्यताओं में निहित भारतीय तत्त्वों के अनुसंधान का दर्शन लिए है। कुमारस्वामी का लेखन किसी कला दर्शन का अक्षरीकरण है जिसे पुस्तक के रूप में तैयार किया गया है।
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