Description
प्राचीन संस्कृत साहित्य के निर्माताओं की इतिहास में रुचि नहीं थी। उन्होंने समकालीन और पुरातन युग की ऐतिहासिक घटनाओं को अपने साहित्य में उपिय स्थान नहीं दिया। उनमें कुछ तो अपने नाम, वंश, स्थान प्रादि के सम्बन्ध में भी मौन रहे। फलस्वरूप, संस्कृत साहित्य के इतिहास में उनके वंश, काल, स्थान आदि के विषय में भिन्न-रिन धारणाएं प्रचलित हो गई है। उक्त कथन सामान्यतः संस्कृत के अधिकांश कवियों पर लागू होता है। कविकुलगुरु कालिदास इस कथन के घपवाद नहीं है। विद्वानों के तर्क बितर्क धाम तक उनके सम्बन्ध में किसी निश्चय को नहीं पहुँच सके। भरसक प्रयास करने पर भी त के हेत्वाभास प्रस्त होने के कारण समस्या पूर्ववत् सन्दिग्ध ही बनी हुई है।
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