Description
बृहस्पति और याज्ञवल्क्य के संवाद के अनुसार हरि बृहस्पतिरुवाच याज्ञवल्क्य. यदनु कुरुक्षेत्रं देवानां देव यंजनं सर्वेषां भूतानां ब्रह्मसदनं सत्माद्यत्र क्कंचन गच्छेत्तदेव मन्येतेति अत्रहि जन्तो प्राणेशत्क्रमाणेषु रूद्रतारक ब्रह्मव्याचष्टे येनासावमृती भूत्वामेक्षी भवति । तस्माद विमुक्तमेव निषेवेत । अविमुक्तं न विमुच्चेत। एवम एव एष भगवन्निति वै याज्ञवल्क्यः ।।1 तारकोपनिषद् ।। शत्पथ ब्राह्मण के अनुसार यहाँ देवता यज्ञ करते हैं “कुरुक्षेत्रेऽमी देवा यज्ञं तप्वते” । इस धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की महिमा मान्नव कल्याण करने वाली है। बुद्धि, वाणी और मन को शुद्धि के लिए है। सुमिन्द्र शास्त्री जी ने स्वयं धर्मक्षेत्र के सभी 48 कोस के तीर्थों की परिक्रमा परिवार सहित कर इस भूमि के विषय में जनसामान्य को अवगत करवाने का प्रयास अपनी लेखनी के माध्यम से किया है। इन्होंने प्रथम यात्रा के पश्चात् कुरुक्षेत्र भूमि 48 कोसीय जो मानचित्र बनाया है, उससे प्रत्येक यात्री की यात्रा सफल होगी, यह प्रयास सराहनीय है। सभी पुराणों और प्रामाणिक साक्ष्यों के दृष्टांत प्रशंसा के योग्य है। एतदर्थ शास्त्री जी साधुवाद के पात्र हैं। कुरुक्षेत्र महिमा का वर्णन अपने आपमें एक अनुपम् प्रयास है। मैं आपको इसके लिए शुभकामनाएँ देता हूँ।
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