Description
“मनोविज्ञान के संप्रदाय एवं इतिहास” का स्वरूप कुछ अनौखा है। इस पुस्तक में कुल 21 अध्याय है। प्रथम 19 अध्यायों में मनोविज्ञान के विभिन्न स्कूलों एवं सम्प्रदायों की आलोचनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की गई है। प्रारम्भिक दर्शनिक मनोविज्ञानियों के विचाराधारा को प्रथम दो-तीन अध्यायों में सविस्तार प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के उद्भव की पृष्ठभूमि ठीक ढंग से समझ में आ जाएँ। 20वीं अध्याय में आधुनिक प्रमुख संप्रत्ययों एवं उनकी सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि का सविस्तार वर्णन किया गया है। 21वीं अध्याय में भारतीय मनोवैज्ञानियों के योगदानों का उल्लेख किया गया है। यद्यपि भारतीय मनोवैज्ञानियों का योगदान में उतनी क्रमबद्धता नहीं है जितना कि पश्चिमी मनोविज्ञानियों के योगटानों में है, फिर भी उनके योगदानों की कड़ी को ठीक ढंग से सजाने की कोशिश की गयी है ताकि उनमें एक क्रमबद्धता दीख पड़े। इस पुस्तक की कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य पुस्तकों से भिन्न एवं उत्कृष्ट बना देता है मनोविज्ञान के प्रत्येक सम्प्रत्यय का सविस्तार वर्णन किया गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय या स्कूल के महत्त्वपूर्ण मनोविज्ञानियों के योगदानों की आलोचनात्मक समीक्षा की गई है। आधुनिक सैद्धान्तिक सम्प्रत्ययों का भरपूर वर्णन उपस्थित किया गया है। भारतीय मनावैज्ञानिकों के योगदानों को क्रमबद्ध ढंग से सजाया गया है। पुस्तक की भाषा सरल, सरस तथा सुगम है।
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