Description
श्रीमद्भास्कराचार्य-कृत सिद्धान्तशिरोमणि ज्योतिविज्ञान का अप्रतिम ग्रंथ, है। उसकी महत्ता खगोलज ज्योतिर्विदों के सर्वमान्य है। इस ग्रंथ के चार विभाग हैं-1. लीलावती (अंकगणित) 2. बीजगणित, 3. ग्रहगोलाध्याय, 4. ग्रहगणितध्याय। वस्तुतः ‘सिद्धान्तशिरोमणि’ ग्रंथ के प्रसिद्ध चार विभागों में ग्रहगोलाध्याय’ का महत्त्व शीर्षस्थ है। ‘ग्रहगोलाध्याय ग्रंथ में कुल 14 प्रकरण हैं-इन प्रकारणों आकाश में पृथ्वी की स्थिति, स्वरूप, व्यास, क्षेत्रफल, घनफल, पृथ्वी में आकर्षण शक्ति तथा काल सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन, क्षयाधिमा विवेचन के साथ-साथ सृष्टायादि से इष्ट दिन के अहर्गण से पंचांगगणित ज्ञान, मानव के चंद्रमास के तुल्य पितरों का एक दिन का गणित ज्ञान, ब्रह्माण्ड में सदोदित रविदर्शन बिन्दु ज्ञान, सूर्य चन्द्रग्रहणों का गोल गणित, नाना प्रकार के यंत्रों की इचना और उनका उपयोग, वेध द्वारा केवल सूर्यदर्शन एवं उसकी छाया से पंचागं जान इत्यादि अनेक खगोलीय चमत्कारिक गणित से यह ग्रंथ विभूषित है। उक्त मूल और संस्कृत टीका के साथ-साथ पं० श्री केदारदत्त जोशी द्वारा हिन्दी में सोपत्तिक ‘केदारदत्तः आख्यान पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। पण्डित परम्परा के ज्योतिर्वदों की वंशावली से संसेवित ‘जुनायल’ ग्राम (अल्मोड़ा) में जन्में, अपने पूज्य पिता पंडित हरिदत्त ज्योतिर्विद् से यथोचित ज्योतिष एवं शाक्त तथा तन्त्र शास्त्र का आपने अध्ययन किया।
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