Description
ज्योतिष शास्त्र के होरा-स्कन्ध में ताजिक ज्योतिष का समावेश होता है। मानव की पूर्ण आयु में प्रत्येक नवीन वर्ष के प्रवेश-समय को जानकर कुण्डली द्वारा वर्षपर्यन्त प्रत्येक मास का, प्रत्येक दिन व दिनार्थ से भी सूक्ष्म समय का शुभाशुभ-भविष्य-ज्ञान-प्रतिपादक फलित ज्योतिष का नाम ताजिक ज्योतिष है। आचार्य नीलकण्ठ ने सन १५८७ में ताजिक नीलकण्ठी की रचना तीन तन्त्रों-प्रथम संज्ञातत्र, द्वितीय वर्षतन्त्र, तृतीय प्रश्नतन्त्र में की थी। १. संज्ञातन्त में: राशियों का दिग्देश-स्वरूपादि वर्णन, किसी भी नवीन वर्ष प्रवेश का सूक्ष्म समय-ज्ञान द्वारा वर्ष- कुण्डली ज्ञान, ग्रहों के अनेक प्रकार के बलों का अथवा परस्पर की दृष्टियों का विचार किया गया है। इसी तन्त्र में वर्षभर में प्राप्त होनेवाले इन्थशाल इक्कवाल-इन्दुवारादि सोलह योगों का विवेचन, मुंथहा ग्रह पर विशेष विचार तथा पुण्य-यश-गुरुज्ञान-माहात्म्य आदिक 38 सहमों का ज्ञान एवं तदनुसार फलादेश का विवेचन हुआ है। २. वर्षतन्त में: वर्ष-मास-दिनेशादि ग्रह-निरूपण, प्रथमादि द्वादश भावों का फल-विचार, दशाक्रम व विचार के साथ राजाओं के आखेट भोजन-स्वप्न आदि अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। ३. प्रश्नतन्त्र में ग्रहों की अवस्था, स्वरूप, जय, पराजय, शरीर, रोग, धन, पुत्र, स्त्री, आयु तीर्थागमन, विदेशगमन, पद-प्राप्ति, नष्ट-द्रव्यज्ञान, राजभय, बन्धन, मोक्ष, क्रय-विक्रय प्रभृति अनेक प्रश्नों का प्रश्न लग्नानुसार विचार किया गया है।
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