Description
आयुर्वेद अनादि एवं सनातन है। इसकी उत्पत्ति प्राणियों की उत्पत्ति से पूर्व हो गई थी। इसका प्रमाण वेदों से प्राप्त होता है। वेद विश्व के लिखित साहित्य में सर्व प्राचीन ग्रन्थ माने गये हैं। मनुष्य जीवन में स्वास्थ्य का बहुत महत्व है। स्वस्थव्यक्ति ही पुरुषार्थ चतुष्टय को प्राप्त कर सकता है। आयुर्वेद अवतरण की परम्परा आयुर्वेद संहिताओं के अतिरिक्त जैन वाघ्मय में भी प्राप्त होती है। जिसका वर्णन वर्तमान में एकमात्रा ग्रन्थ ‘कल्याण कारकम् में है जो उग्रादित्याचार्य द्वारा लिखा हुआ है। यद्यपि इस ग्रन्थ में अष्टांग आयुर्वेद का वर्णन एवं निदान चिकित्सा का वर्णन आयुर्वेद ग्रन्थों की तरह ही है तथापि यहां इसका नाम ‘प्राणवाय’ दिया है। इस ग्रन्थ की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि प्रथम तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव जो आदिनाथ के नाम से जाने जाते हैं, उन्हीं के समक्ष में उपस्थित होकर चक्रवर्ती भरत आदि भव्यों ने कहा कि पूर्व में योग भूमि में लोग परस्पर स्नेह का व्यवहार एवं अनेक प्रकार के सुख प्राप्त करते थे। उनमें देवों ने तो दीर्घायु प्राप्त कर ली किन्तु मनुष्यों में वात, पित्त, कपफ के प्रकोप से अनेक प्रकार की भयंकर व्याध्यिों उत्पन्न हुई। शीत. आतप एवं वर्षा आदि से पीड़ित कालक्रम से मिथ्याआहार के वशीभूत मनुष्यों के लिए आप ही शरण प्रदान करने वाले हैं। अतः नाना प्रकार की व्याध्यिों से पीड़ित लोग आहार- विहार एवं औषध्यिों की युक्ति नहीं जानने वाले मनुष्यों के स्वास्थ्य रक्षा तथा रोगों को दूर करने वाली चिकित्सा का वर्णन कीजिये। इस प्रकार विश्व कल्याण की कामना कररने वाले प्रमुख गणधर भरत चक्रवर्ती को आगे कर भगवान आदिनाथ से निवेदन किया।
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