Description
‘योगवासिष्ठ- महारामायण’ अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। वेदान्तदर्शन की ही एक शाखा है-अद्वैत वेदान्त वेदान्तदर्शन भारतीय दर्शनों में से एक है। वेदान्त को विद्वानों ने उपनिषद् नाम दिया है वेदान्तो नाम उपनिषत् प्रमाणम्’ वेद का अन्त (अन्तिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति बतलाने वाले शास्त्र को वेदान्त कहा गया है। वेदान्त एवं अध्यात्म भिन्न-भिन्न नहीं है, क्योंकि दोनों का लक्ष्य निर्वाण (मोक्ष) पद प्राप्त करना है। वेदान्त में कोई भी ग्रन्थ इतना विस्तृत और अद्वैत-सिद्धान्त को इतने आख्यानों, दृष्टान्तों और युक्तियों से ऐसा दृढ़ प्रतिपादन करने वाला अद्यावधि नहीं लिखा गया है। इस विषय में सभी सहमत हैं कि इस एक ग्रन्थ के चिन्तन-मनन से कैसा भी विषयासक्त और संसार में मग्न पुरुष हो, वह वैराग्य-सम्पन्न होकर क्रमश: आत्मपद में विश्रान्ति पाता है। योगवासिष्ठ -महारामायण में जीवात्मा को मोक्ष (निर्माण) पद की प्राप्ति कैसे हो ? इस विषय पर वृहद चिन्तनपरक सामग्री प्रस्तुत की गई है। योगवासिष्ठ के अध्येता तथा मननकर्ताओं से यह बात छिपी नहीं है कि यह अन्य भारत ही नहीं, अपितु विश्वसाहित्य में शनात्मक सूक्ष्म विचार तत्त्वनिरूपक तथा श्रेष्ठ सदुक्ति पूर्ण ग्रन्थों में सर्वश्रेष्ठ है। यह महारामायण वसिष्ठरामायण आदि नामों से भी विख्यात है। भगवान् वसिष्ठ ने कहा है कि संसार-सर्प के विष से विकल तथा विषय- विधिका से पीड़ित मृतमय प्राणियों के लिए योगवासिष्ठ परम पवित्र अमोघ गारुड़-मन्त्र है। इसके श्रवणमात्र से जीवन्मुक्ति-सुख का अनुभव होता है।
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